अ जी सरकार फरमाइए
पेश-ए-खिदमत क्या करूं ,
दिल जिगर या आपके
हुजूर मैं हाजिर जां करूँ ।
बाकी नहीं है कुछ जानिब में
जनाब को सुपुर्द क्या करूँ,
इजाजत गर मिलती है तो,
खुद को सुपुर्द आप करूँ ।
ज़माने भर का डर जेहन में
जम जाता है मैं क्या करूँ ,
जरा सी बात पर जल जाता है जिगर
आप ही कहो मैं क्या करूँ ।
जेहन में जनाब के ख्याल के सिवाय
कुछ भी नहीं आता है मैं क्या करूँ ,
जहर बन जिस्म-ओ-जान,
जलाती है जुदाई मैं क्या करूँ ।
पेश-ए-खिदमत क्या करूं ,
दिल जिगर या आपके
हुजूर मैं हाजिर जां करूँ ।
बाकी नहीं है कुछ जानिब में
जनाब को सुपुर्द क्या करूँ,
इजाजत गर मिलती है तो,
खुद को सुपुर्द आप करूँ ।
ज़माने भर का डर जेहन में
जम जाता है मैं क्या करूँ ,
जरा सी बात पर जल जाता है जिगर
आप ही कहो मैं क्या करूँ ।
जेहन में जनाब के ख्याल के सिवाय
कुछ भी नहीं आता है मैं क्या करूँ ,
जहर बन जिस्म-ओ-जान,
जलाती है जुदाई मैं क्या करूँ ।
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