सूरज जब अपने रात्रि विराम को हो लेता है,
चाँद जब अपने प्रेमी नभ को चूम लेता है।
तारें जब आसमान को फूलों से सजा लेते हें ,
तुम्हारी यादें, तुम्हारी कमी दिल को झकझोर देते हैं।
शुष्क नज़र तुम्हारी तलाश का नाकाम प्रयास करती है,
जुदाई हमारे दिल को तहस नहस कर रख देती है।
हम इस दर्द से मुक्ति पाने की सूरत तलाशते हें,
विवश होकर हाला की मदभरी पनाह में चले जाते हें।
शराब हमसे किये हुए नशे का अपना वादा निभाती है,
मूर्त दुनिया, रिश्तेनाते नजरसे ओझल होती जाती है।
अस्थिर, अवास्तव मगर अद्वुत राज्य में, मैं पहुँच जाता हूँ ,
क्षण भर के लिए प्रखर, प्रचंड महाप्रतापी राजा बन जाता हूँ।
मैं नशे के राक्षसी चंगुल में कसकर फसजाता हूँ,
शेर के जवड़े में फसे हिरन की तरह तड़प जाता हूँ।
जहर खून पर अपना कब्ज़ा जरूर जमा लेता है,
मगर जेहन पर इसका नियंत्रण धीरे धीरे ढीला पड़ता जाता है।
जहर और यादों की इस रस्साकशी में प्यार विजेता उभर आता है
शिकंजो की इस भिड़ंत में तुम्हारा भारी पड़ जाता है।
बाला की जीत और हाला की हार हो जाती है
शराब गमसे निकलने का सिर्फ एक झूठा बहाना साबित होती है।
तुम्हारी यादें पहले सा हिल्लोर मारती रहती है,
हम दुःख के सागर में पहले सा गोता खाते रहते हैँ।
तुम्हारी बराबरी सिर्फ तुम हो ये मैं समझने लगता हूँ,
अपनी नादानी पर मूर्खों कि भांति हँस उठता हूँ।
तुम्हारी यादें, तुम्हारी कमी दिल को झकझोर देते हैं।
शुष्क नज़र तुम्हारी तलाश का नाकाम प्रयास करती है,
जुदाई हमारे दिल को तहस नहस कर रख देती है।
हम इस दर्द से मुक्ति पाने की सूरत तलाशते हें,
विवश होकर हाला की मदभरी पनाह में चले जाते हें।
शराब हमसे किये हुए नशे का अपना वादा निभाती है,
मूर्त दुनिया, रिश्तेनाते नजरसे ओझल होती जाती है।
अस्थिर, अवास्तव मगर अद्वुत राज्य में, मैं पहुँच जाता हूँ ,
क्षण भर के लिए प्रखर, प्रचंड महाप्रतापी राजा बन जाता हूँ।
मैं नशे के राक्षसी चंगुल में कसकर फसजाता हूँ,
शेर के जवड़े में फसे हिरन की तरह तड़प जाता हूँ।
जहर खून पर अपना कब्ज़ा जरूर जमा लेता है,
मगर जेहन पर इसका नियंत्रण धीरे धीरे ढीला पड़ता जाता है।
जहर और यादों की इस रस्साकशी में प्यार विजेता उभर आता है
शिकंजो की इस भिड़ंत में तुम्हारा भारी पड़ जाता है।
बाला की जीत और हाला की हार हो जाती है
शराब गमसे निकलने का सिर्फ एक झूठा बहाना साबित होती है।
तुम्हारी यादें पहले सा हिल्लोर मारती रहती है,
हम दुःख के सागर में पहले सा गोता खाते रहते हैँ।
तुम्हारी बराबरी सिर्फ तुम हो ये मैं समझने लगता हूँ,
अपनी नादानी पर मूर्खों कि भांति हँस उठता हूँ।
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