मुझ पर, मेरे तन, मन,प्रीत पर,
अब हक़ हासिल रखते हो सिर्फ तुम मुरलीधर ,
और कोई नहीं है यहाँ, कण भर,
ना है कोई, ना ठहर सकता है यहाँ क्षण भर।
कर्म, विश्राम, शयन, जागरण,
चेतन, चिंतन, अवचेतन मन,
हर ओर तेरे ओज की है भरमार,
अद्भुत, अतुलनीय, श्याममय, सुंदर।
फ़िर चाहे, ये, वो या कोई और,
आ जाएँ मेरे सामने बार-बार,
न है, न रहेगा कोई असरदार,
क्योंकि तुम हो यहाँ, प्रबल हर ओर।
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