जीतेजी साथ न देनेवाले ,
मरने पे आंसू बहाते हें ।
जीतेजी ढूंढ़कर दोष निकालते हें ,
मरने पे गुण गाते न थक जाते हें।
रूबरू तारीफ के कशीदे बांधने वाले,
पिछे क्या गुल खिलाते हें,
दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए,
बगल में खंजर छुपाते हैं।
दुसरों की गलती पर ऊँगली उठानेवाले,
अपने गुनाह पर परदे डालते हें ,
औरों की खिल्ली उड़ाते हें ,
अपनों पर चुप हो जाते है।
मंदिर, बाबाओं पर धन बरसानेवाले,
बाहर भिखारी को दुत्कारते हें ,
सुबह सत्संग में कहानी सुनकर आते हें ,
शाम को जाम से जाम टकराते हें ।
अपने अधिकार के लिए आवाज उठानेवाले,
देश के प्रति अपने कर्तब्य को भूल जाते हें ,
पहले गंदगी फैलाते हैं
बाद में "गंदा" ,"गंदा" चिल्लाते हैं ।
कायदा कानून के रखवाली करने वाले ,
पैसा देख कर झुक जाते हें,
अपराधी के रहनुमा बनजाते हें ,
खुद कानून का तोड़ निकालते हें।
नारी सम्मान पर भाषण देनेवाले ,
सालगिरह पर मुजरा कराते हें ,
शराब, शबाब, और कबाब पर मस्त हो जाते हें ,
देश का पैसा पानी की तरह बहाते हें।
औरों के बच्चों को गोली मार देनेवाले,
खुदके बच्चों की खरोंचों से रो पड़ते हें ,
धर्म और भगवान की दुहाई देते हें ,
हिंसा और शैतान के रास्ते चलते हें।
हम अच्छे इंसान कब बन पाएंगे ?,
क्या हम कभी खुदा के नेक बंदा कहलायेंगे ?
इस तरह से कैसे होगी समाज की रचना ?
देर न हो जाए इस पर अभी है सोचना।
मरने पे आंसू बहाते हें ।
जीतेजी ढूंढ़कर दोष निकालते हें ,
मरने पे गुण गाते न थक जाते हें।
रूबरू तारीफ के कशीदे बांधने वाले,
पिछे क्या गुल खिलाते हें,
दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए,
बगल में खंजर छुपाते हैं।
दुसरों की गलती पर ऊँगली उठानेवाले,
अपने गुनाह पर परदे डालते हें ,
औरों की खिल्ली उड़ाते हें ,
अपनों पर चुप हो जाते है।
मंदिर, बाबाओं पर धन बरसानेवाले,
बाहर भिखारी को दुत्कारते हें ,
सुबह सत्संग में कहानी सुनकर आते हें ,
शाम को जाम से जाम टकराते हें ।
अपने अधिकार के लिए आवाज उठानेवाले,
देश के प्रति अपने कर्तब्य को भूल जाते हें ,
पहले गंदगी फैलाते हैं
बाद में "गंदा" ,"गंदा" चिल्लाते हैं ।
कायदा कानून के रखवाली करने वाले ,
पैसा देख कर झुक जाते हें,
अपराधी के रहनुमा बनजाते हें ,
खुद कानून का तोड़ निकालते हें।
नारी सम्मान पर भाषण देनेवाले ,
सालगिरह पर मुजरा कराते हें ,
शराब, शबाब, और कबाब पर मस्त हो जाते हें ,
देश का पैसा पानी की तरह बहाते हें।
औरों के बच्चों को गोली मार देनेवाले,
खुदके बच्चों की खरोंचों से रो पड़ते हें ,
धर्म और भगवान की दुहाई देते हें ,
हिंसा और शैतान के रास्ते चलते हें।
हम अच्छे इंसान कब बन पाएंगे ?,
क्या हम कभी खुदा के नेक बंदा कहलायेंगे ?
इस तरह से कैसे होगी समाज की रचना ?
देर न हो जाए इस पर अभी है सोचना।
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