बाबा बन कर प्रवचन देनेवाले ,
आस्था को बेचकर खाते हैं ,
नफरत का जहर फैलाते हुये ,
अपनी दुकान चलाते हैं।
धर्म के टुकड़े करने वाले ,
अपना पंथ बनाते हैं ,
खुद भगवान बन जाते हैं ,
लोगो को उल्लू बनाते हैं।
त्याग,मोह पर प्रवचन देने वाले ,
भोग-विलाश में रम जाते हैं ,
नगर सेठ घर ठहराव करके ,
प्रवचन के एवज में बड़ी राशि एठ जाते हैं।
पढाई आधे में छोड़ देने वाले,
स्कूल ,कॉलेज खोल बैठ जाते हैं ,
सरस्वतीजी की पूजा करने के बहाने ,
लक्ष्मीजी की आरती उतारते हैं।
समाज के चौथी स्तम्ब कहलाने वाले ,
छोटी मोटी खबर छापते रहजाते हें ,
बड़े बड़ों से सौदा करके ,
अपनी तिजोरी भरते हैं।
सरकारी ऊँचे औहदे पर बैठने बाले,
मासूम जनता पर कहर बरपाते हें ,
भले बुरे की विवेचना छोड़ो ,
खुदा तक को भूल जाते हैं।
हमारे वोट पर सत्ता में कविज होने वाले ,
हम पर रॉब जमाते हें
पांच साल में एक बार सर झुकाते हें ,
आगे उलाहना बरसाते हैं।
औषधि बिज्ञान पढ़नेवाले ,
जन और सेवा को भूल जाते हें ,
आपस में सांठगांठ करते हुए ,
मरीज को लूट कर खाते हैं।
सचाई की राह पर चलनेवाले,
चैन की रोटी खाते हें ,
थोड़े से गुजारा करते हें
सुकून की जिंदगी जीते हें।
आस्था को बेचकर खाते हैं ,
नफरत का जहर फैलाते हुये ,
अपनी दुकान चलाते हैं।
धर्म के टुकड़े करने वाले ,
अपना पंथ बनाते हैं ,
खुद भगवान बन जाते हैं ,
लोगो को उल्लू बनाते हैं।
त्याग,मोह पर प्रवचन देने वाले ,
भोग-विलाश में रम जाते हैं ,
नगर सेठ घर ठहराव करके ,
प्रवचन के एवज में बड़ी राशि एठ जाते हैं।
पढाई आधे में छोड़ देने वाले,
स्कूल ,कॉलेज खोल बैठ जाते हैं ,
सरस्वतीजी की पूजा करने के बहाने ,
लक्ष्मीजी की आरती उतारते हैं।
समाज के चौथी स्तम्ब कहलाने वाले ,
छोटी मोटी खबर छापते रहजाते हें ,
बड़े बड़ों से सौदा करके ,
अपनी तिजोरी भरते हैं।
सरकारी ऊँचे औहदे पर बैठने बाले,
मासूम जनता पर कहर बरपाते हें ,
भले बुरे की विवेचना छोड़ो ,
खुदा तक को भूल जाते हैं।
हमारे वोट पर सत्ता में कविज होने वाले ,
हम पर रॉब जमाते हें
पांच साल में एक बार सर झुकाते हें ,
आगे उलाहना बरसाते हैं।
औषधि बिज्ञान पढ़नेवाले ,
जन और सेवा को भूल जाते हें ,
आपस में सांठगांठ करते हुए ,
मरीज को लूट कर खाते हैं।
सचाई की राह पर चलनेवाले,
चैन की रोटी खाते हें ,
थोड़े से गुजारा करते हें
सुकून की जिंदगी जीते हें।
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