(1)
तू कहती फिरती थी की गुनहगार है हम ,
फिर तू क्यों छुपाते फिर रही है चेहरा अपना ।
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(2)
आज जब हम आईना के सामने गए ,
मेरी आंखों में तेरी बेवफा सूरत उभर आयी।
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(3)
आग तो तू ने लगाई थी मेरे जीबन में ,
फिर धुआँ क्यूँ कर तुम्हारे घर से उठ रहा।
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(4)
कब तक भागते फिरोगे तुम अपनी गुनाहों के साये से ,
सच्चाई की रोशनी तुम्हे बेनकाब कर देगी एक दिन।
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(5)
मक्कारी के बीज तो बो लिये है तुम ने,
अब क्या झूट के फसल को ढो पाओगे उम्र भर।
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(6)
तेरी जुल्म-ओ-सितम को हमनें तो बरदास्त कर लिया ,
पर क्या खुदा को भी तेरी बेवफाई राश आयेगी ।
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(7)
वक्त लगेगा जरूर है मेरी आह को असर करने में ,
भले हम तेरी हालात को देखने के लिए रहे न रहे।
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तू कहती फिरती थी की गुनहगार है हम ,
फिर तू क्यों छुपाते फिर रही है चेहरा अपना ।
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(2)
आज जब हम आईना के सामने गए ,
मेरी आंखों में तेरी बेवफा सूरत उभर आयी।
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(3)
आग तो तू ने लगाई थी मेरे जीबन में ,
फिर धुआँ क्यूँ कर तुम्हारे घर से उठ रहा।
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(4)
कब तक भागते फिरोगे तुम अपनी गुनाहों के साये से ,
सच्चाई की रोशनी तुम्हे बेनकाब कर देगी एक दिन।
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(5)
मक्कारी के बीज तो बो लिये है तुम ने,
अब क्या झूट के फसल को ढो पाओगे उम्र भर।
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(6)
तेरी जुल्म-ओ-सितम को हमनें तो बरदास्त कर लिया ,
पर क्या खुदा को भी तेरी बेवफाई राश आयेगी ।
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(7)
वक्त लगेगा जरूर है मेरी आह को असर करने में ,
भले हम तेरी हालात को देखने के लिए रहे न रहे।
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