वसंत के बगीचे में
पहले भी वह रंग ओ रौनक थी, मगर,
मेरे मन के फूल पर उनकी कोई
असर न था।
पहाडों के सीने से
ठंडी हवाओं की आवक पहले भी थी, मगर,
मेरा कलेजा उसकी
चुभन से कभी थर्राता न था।
आसमान के आंगन से
चांद पहले भी श्वेत हलस बिखेरता था, मगर,
मेरी भावना की परिधि में कोई उजाला
पहुंचता ही न था।
आम के उपवन में कोयल पहले भी
सुर साधना करती थी, मगर,
मेरे लिए वह सिर्फ
एक मामुली चहचहाहट से ज्यादा न था।
तुम कहो,
क्यूं आज वसंत के गुल
दिल को इतना लुभाती है ?
ठंडी हवा क्यूं आज तन मन
को रोमांचित करती है ?
क्यूं चाँदनी आज दिल
को इतने प्यार से गुदगुदाती है ?
आज क्यूं कोयल मिलन
का सुर विखेरे नजर आती है ?
क्या यह तेरे आवन का
असर है ?
या फिर इसकी वजह कुछ
और है ?
No comments:
Post a Comment