मोह माया के सेवकों से दुर जाने की निश्चय की शाम।
एक अंतहीन आगे बढ़ने की होड़ जहां अंत में हाथ खाली रह जाए,
आज उस अंधी दौड़ से विराम लेने के निर्णय की शाम ।
ओ दौलत, वासना,सुस्वादु-भोज की प्यास जो पाकर भी कभी न कम होए,
आज उस प्यास से मुँह मोड़ लेने के संकल्प की शाम।
सांसारिक दायित्वों जिसमें इंसान सदा उलझनों में डूब कर रह जाए,
उन सकल कर्मों को निर्लिप्तता से निभाने के शपथ लेने की शाम।
हर नशासक्तिता जो जीवन को पल पल नर्कगामी करती चली जाए,
उन नशे से दूर कृष्ण भक्ति के नशे में चूर होने की दृढ़ता अपनाने की शाम।
इससे पहले की ढ़ेर देर हो जाए, मेरे हाथ से वक्त निकल जाए,
आज की यह शाम मेरे लिए अन्तः दृस्टि, आत्ममंथन, दिव्यचिंतन की शाम।
No comments:
Post a Comment