न जाने कब और क्यों मेरे सामने आ गए वो,
मुझे लगा कि हाँ हो न हो यही है वो,
यही है वो जो दशकों पहले पीछे छूट गए थे ,
दुनिया गोल है सो फिर से सामने आ गए थे।
मुझसा अपने खोए हुए कल को ढूंढ रहे थे वो,
कागज़ के बेजान पन्नो में कलम से जान डाल रहे थे वो,
गुलाबी लब्ज़ों में अपने प्रियतम की छबि उंकेर रहे थे,
नजाने कब मेरी तस्बीर अपने कागज़ पर रंग गये थे,
यकीं मानिये मैं न जानूं कब मेरे कागज़ पर छा गए थे वो ,
न मालूम कब मेरी कलम उनकी गुलाम बन गए थे।
दोनों की प्यासी रूहों की इल्म-ओ-फ़िक्र था खुदा को,
बड़े जतन से मिलाकर एक कर दिया उसने दीवाने दो।
अब क्या था मिलन का गर्म दिन छोटा पड़ने लगा,
जुदाई की सर्द रातें लम्बी लगने लगी,
रह रह कर दिन में हसीन सपने आने लगे,
और रातें करवटें बदलते कट जाने लगी।
दोनों की कलम एक सुर में गुन गुनाने लगी,
प्रेम के मधुर फ़साने लिख जाने लगे।
वे मेरे हो गए, मुझमें समा गए,
में उनमें खो गया उन हो गया।
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