हे कृष्ण, चरम, परम, करम, धरम धारी ,
केवल तू ही है मेरी पूजा की अधिकारी।
केवल तू ही है सत्य, नित्य, यथार्थ, समर्थ,
बाकी सब है छाया, माया, धोखा, अनर्थ।
मेरी प्रीति की तू ही है एक मात्र अधिकारी,
हे मुरलीमनोहर जीवनाधार चमत्कारी ।
जब से मैंने होश संभाला है,
तेरे प्रीत का उपहार मुझे मिला है,
फिर क्यों दूँ मैं इस मन को,
किसी जड़ बुद्धि* तन** को,
मेरी चित्त का तू ही है एक मात्र अधिकारी
हे श्यामसुंदर जीवनसांभर चक्रधारी ।
माँगा नहीं है मैंने तुझे कभी कुछ,
मगर तुमने कमी भी न रखा है कभी कुछ,
फिर क्यूँ मैं हाथ फैलाऊँ कहीं और,
क्यूँ मैं हृदय बिछाऊँ कोई और ठौर,
मेरी प्रीति का तू ही है एक मात्र अधिकारी,
हे कृष्ण प्रियतम जीवनाधिप गिरिधारी ।
*जड़ बुद्धि ... पार्थिव सर्वस्व।
**तनको। .... जिसके लिए देह ही सबकुछ।
केवल तू ही है मेरी पूजा की अधिकारी।
केवल तू ही है सत्य, नित्य, यथार्थ, समर्थ,
बाकी सब है छाया, माया, धोखा, अनर्थ।
मेरी प्रीति की तू ही है एक मात्र अधिकारी,
हे मुरलीमनोहर जीवनाधार चमत्कारी ।
जब से मैंने होश संभाला है,
तेरे प्रीत का उपहार मुझे मिला है,
फिर क्यों दूँ मैं इस मन को,
किसी जड़ बुद्धि* तन** को,
मेरी चित्त का तू ही है एक मात्र अधिकारी
हे श्यामसुंदर जीवनसांभर चक्रधारी ।
माँगा नहीं है मैंने तुझे कभी कुछ,
मगर तुमने कमी भी न रखा है कभी कुछ,
फिर क्यूँ मैं हाथ फैलाऊँ कहीं और,
क्यूँ मैं हृदय बिछाऊँ कोई और ठौर,
मेरी प्रीति का तू ही है एक मात्र अधिकारी,
हे कृष्ण प्रियतम जीवनाधिप गिरिधारी ।
*जड़ बुद्धि ... पार्थिव सर्वस्व।
**तनको। .... जिसके लिए देह ही सबकुछ।
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