किस चीज़ से रखूँ लगाव ,
किस शख्स से रखूँ जुड़ाव,
क्यूँ कर बनाउँ जहाँ में रिश्ते,
क्यों रोऊँ किसी चीज़ के वास्ते,
जब सब कुछ एक दिन छूट जाना है,
जब हाथ कुछ भी नहीं आना है।
सारे अनित्य के बीच एक सत्य को मैंने देखा है,
उसके अद्भुत ओज को मैंने परखा है,
जो की था, है और रहेगा अबश्य ,
अनुभूत,असरदार पर अप्रकट, अदृश्य
जब तक है जान, धरती और आसमान,,
और फिर उसके बाद भी यक़ीनन।
वो तुम हो कृष्ण और तुम्हारे प्रीति का मोल,
तुम्हारी लीलाएँ अद्भुत अनमोल।
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