सजादो
ओ जगवालों चाहे जितना दिया मेरे चारों ओर,
तुम
चाहते हो कि मैं भी थोड़ा उजालें से नहालूँ,
गम
के अँधेरे से निकल कर कुछ देर मुस्कुरालूँ।
आज थोड़ी देर मैं मुस्कुरा भी लूंगा तो फिर कल क्या होगा,
इन
नन्हे प्रदीपों से तुम मेरे मन को रोशन करने की चाह रखते हो,
बड़े
नादाँ हो तुम, जुगनुओं से जग उजियारा करने का आग्रह करते
हो।
है
एक चांद जो कर सकता था मेरे अँधेरे को दूर,
पूर्णमासी
फिर नहीं आएगी कभी मेरे जीवन में,
अमावस
तय कर चुकी है कि करेगी राज अब मेरे आंगन में।
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