न जलेगा अब की बार मेरे आँगन दीया,
अंधेरे का आदी हूं मैं, उजाला में मेरा काम है क्या ?
तुम भी जगवालों दिलजले को दीया जलाकर न जलाओ,
चुभती है रोशनी यह आग कहीं और ले जाओ।
बीते दिवाली को मेरे सीने में लगी थी जो ठंडी आग,
जल रहा है तब से ये जल कर दिल हो चुका है राख।
राख को आग लगा कर तुम्हे क्या हासिल होगा?
मेरी चुभन, मेरी जलन और भी बढ जाएगी ।
अपनी खुशी के खातिर तुम किसी और को न जलाओ,
जलन का दर्द होता क्या है ये मुझ से पूछ जाओ।
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