हवा में लहराता, हूँ मैं एक सुमन।
धूप से झुलसता, बारिश से ठिठुरता,
प्रकृति माँ का मानवता को अनमोल बरदान।
छोटी सी काया है, जरासा जीवन है,
उससे भी छोटी है मेरी चाहत।
सीमित इस अवधि में, नगण्य इस अवसर में,
करना है मुझे कोई काम महत।
चाह है कि मेरी खूबसूरती से आल्हादित रहे,
परेशान मानव का उदास मन,
मेरी खुशबू से सदा सराबोर रहे,
चारों दिशाओं की धरती गगन।
तुम समझदार हो बुद्धिमान हो,
तुम बिद्वान हो, हे इंसान।
बिनती है तुम से इस तुच्छ सुमन की,
रखना है तुम्हे मेरी चाहत का ध्यान।
तोड़ न देना मुझे कभी डाली से,
न देना मेरे जीवन सफर को आधे में तुम बिराम।
जब तक रहूं मैं धरती पर ,
करता रहूं अपने मन के सारे इप्सित काम।
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