मधुर वचन को बडे मशहूर हो।
मीठे बोल से मोह लेना तो कोई तुम से सिखे,
मीठे बोल से मोह लेना तो कोई तुम से सिखे,
जग में नहीं है कोई ओर मिठास तुम्हारे सरीखे।
नम्र, गंभीर, दृढ, अकाट्य, मर्यादायुक्त,
वचन है श्याम तेरे सदा पात्र उपयुक्त।
बौद्धिक, बेदज्ञानयुक्त, वक्ता तुम बिशिष्ट,
अनमोल तेरे बोल जग में हैं अति श्रेष्ट।
वाणी है की सैंकडों गुलाबों ने पंखुडिआँ खोल दी,
अनमोल तेरे बोल जग में हैं अति श्रेष्ट।
वाणी है की सैंकडों गुलाबों ने पंखुडिआँ खोल दी,
माहौल में जैसे कोई इत्र की महक घोल दी।
गोवर्धन के शिखर से आया कोई ठंडी हवा का झोंका,
गोवर्धन के शिखर से आया कोई ठंडी हवा का झोंका,
या गंधर्ब ने छेड दिया है कोई तान मधुर वीणा का।
पर मनमोहन तेरे मधुर बोल का असर,
न होगा किंचित भी दूखियारी श्रीराधा पर।
नहीं हूं मैं कोई मासूम सी अहीर तरूणी,
नहीं हूं मैं कोई मासूम सी अहीर तरूणी,
कि रिझा लोगे तुम कह कर नई कहानी।
पिरीति का मोल तुम न जानते हो हठी श्यामसुंदर,
पिरीति का मोल तुम न जानते हो हठी श्यामसुंदर,
अगर जानते होते तो क्या होली में रह जाते कंसपुर ?
न करते हो तुम श्रीऱाधा से तनिक भी प्यार,
अगर करते होते तो क्या देते बिछोह का उपहार?
सम्मानिय पाठकों को यह तय करना है की माँ श्रीराधाजी प्रभु श्रीकृष्णजी के विरह में रो रहे हें या प्रभुजी के गुणों का वखान कर रहे हैं
No comments:
Post a Comment