ज़रूरत भर की दोस्ती,
मुझको को न आया।
मतलब की रिस्तेदारी,
मुझको न भाया।
मैं तो साफ़ था दिल से,
सो सब साफ़ कह दिआ,
फ़िर कोई कुछ भी सोचें,
मुझे कुछ आया न गया।
मैंने तो दे दिआ उन्हें वो,
जो कभी अपना हुआ करता था,
फिर ये न देखा पलट कर,
सब कुछ खो कर मैंने क्या पाया।
तुम्हें मुबारक़, हे अजीज़ मेरी,
तुमने सबकुछ पा लिया,
मेरी बात और है,
मैंने तो मुहब्बत की है।
मुझको को न आया।
मतलब की रिस्तेदारी,
मुझको न भाया।
मैं तो साफ़ था दिल से,
सो सब साफ़ कह दिआ,
फ़िर कोई कुछ भी सोचें,
मुझे कुछ आया न गया।
मैंने तो दे दिआ उन्हें वो,
जो कभी अपना हुआ करता था,
फिर ये न देखा पलट कर,
सब कुछ खो कर मैंने क्या पाया।
तुम्हें मुबारक़, हे अजीज़ मेरी,
तुमने सबकुछ पा लिया,
मेरी बात और है,
मैंने तो मुहब्बत की है।
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