उनके लिए गंगा माँ ,
तुम सिर्फ़ एक वहता पानी,
हिमालय से निकलती ,
कल कल करती ,
सागर की ओर भागती
वहता पानी।
मग़र मेरे लिए माँ,
तुम एक महीयसी जननी,
जनक हिमाला से आँचल छुड़ाती
जीव, जहाँ को भिगोती, सींचती ,
पहाड़ पठार से लढ़ती, जीतती
समतल भूमि पर अमृत उढ़ेलती
संतानों के हित को सवांरती
कल्याणकारिणी ममतामयी जननी,
आदर, सम्मान और पूजा की अधिकारिणी।
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