हरि हे, तुम मालिक मैं दास,
भव भँवर में असहाय पड़ा हूँ,
हाथ फैलाए सामने खड़ा हूँ,
कर के तेरी कृपा पर आस,
हरि हे, तुम मालिक मैं दास।
जिसको मिला हो तेरा आसरा,
जिसके मन में हो तेरा बसेरा,
आश्वस्त चितवन, स्थित संतोष,
भव पीड़ा तुच्छ उसके पास,
हरि हे, तुम मालिक मैं दास।
भव भँवर में असहाय पड़ा हूँ,
हाथ फैलाए सामने खड़ा हूँ,
कर के तेरी कृपा पर आस,
हरि हे, तुम मालिक मैं दास।
जिसको मिला हो तेरा आसरा,
जिसके मन में हो तेरा बसेरा,
आश्वस्त चितवन, स्थित संतोष,
भव पीड़ा तुच्छ उसके पास,
हरि हे, तुम मालिक मैं दास।
जड़ बुद्धि हूँ , राह न पाऊँ,
माया की जाल में उलझता जाऊँ,
ऐसे में तुमपर स्थिर विश्वास,
करलो मुझपर कृपा मेरे ईश,
हरि हे, तुम मालिक मैं दास।
Nice
ReplyDeleteNice.Lord Krishna the creator
ReplyDeleteVery nice
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