Wednesday 24 February 2016

On our first meet


We trusted each other, on our first meet
And you did not hesitate to open your heart
And showed me my place in it
Which was blank as you never found any one suitable for it.

You told me, men came and gazed your body,
Appreciated your prettiness  and charisma,
However, none glanced through your soul,
Hence you never ventured to go close to anybody.

As sensual attraction is a temporary phenomenon,
And would diminish with the time and privity,
Youth and beauty are insignificant in matters of peace,
Happiness, satisfaction, rhythm and synchronization in life.

According to you, only I peeped in to your heart,
Studied and understood  the desire and thirst in it,
Respected and cared your emotions, values and ethics,
Without paying attention to your physical aspects.

My life too was facing the drought of an honest soul,
That would care my values rather than count my possessions,
Would passionately and authoritatively guide me,
And carry the duties of a positive critic, a sincere appreciator.

It is worship, Pooja from me of  my Goddess,
A true love that I have deep and indomitable in me,
That Pradipta long cherished and  you most deserve
That is why we are here, together, forever.

Monday 22 February 2016

Come Open

Where and why you hide that,
Which I seek,
For you can never
Hide the truth behind,
A series of lies
Sorrow can never
Be hidden behind,
Your artificial smile.
It is impossible,
To hide your pain
Behind bundles of Money
Or glittering Gold and Diamond.
No one can hide,
Anything at any cost
From God for he knows all
And disposes and exposes all at will.
And we do not have,
You should realize,
Much time to play
This hide and seek game,
As you know well its time,
For both me and you,
To leave the stage.

Saturday 20 February 2016

छटपटाहट

                         देखो, सोचो, जयचंद यहाँ गद्दी की खातिर गौरी के चरण चूमता है,
                      पृथ्वीराज के इर्दगिर्द देखो ये दोगला षड़यंत्र के खंजर ले कर घूमता है।
अभी कुछ दिन पहले टी.वी . पर माननीय मणिशंकर अय्यर के पाकिस्तानी पत्रकारों के साथ वार्तालाप को देखा।  बड़ा आश्चर्य लगा जब मैंने मणिशंकर महोदय को यह कहते हुए सुना की, "आप नरेंद्र मोदी को हटा दीजिए, भारत और पाकिस्तान की द्विपक्षीय संबंध बेहतर हो जाएगा।" कुछ  सवाल मन में आए अगर महाशय सामने होते तो पूछ लेता।
१. क्या नरेंद्र मोदीजी तब शासन में थे जब १९६५ में भारत-पाक लड़ाई हुई  थी  ?
२.क्या नरेंद्र मोदीजी तब भारत का   नेतृत्व कर रहे थे जब १९७१ में बांग्लादेश की आजादी के लिए भारत-पाकिस्तान में भिड़न्त हुई थी  ?
३. जनरल मुशर्रफ़ के राज में १९९९ के कारगिल घुसपैठ के समय क्या नरेंद्र मोदीजी सत्ता में थे ?
४. गणतंत्र में जनता राजनैतिक दल और भाग्य का  फैसला अपने मतदान के द्वारा करती  है। २०१४ में करप्शन और नाकामयाबी से घिरा हुआ मणिशंकर अय्यरजी का  राजनैतिक दल कांग्रेस को नरेंद्र मोदीजी के दल भारतीय जनता पार्टी ने बुरी तरह हराते हुए सत्ता से बाहर कर दिया  था । गणतंत्र में यह सत्तापरिवर्तन कोई पहली बार नहीं हुआ। फिर वह कौनसी छटपटाहट है कि  आप एक बिदेशी मुल्क से आप के देश में सत्ता परिबर्तन की गुजारिश कर रहे हें ?
५. नरेंद्र मोदीजी को भारत की  जनता ने सत्ताशीन किया है। उनके कर्म अगर सही न हुए,  अगर देश  की  जनता जनार्दन को उनपर भरोसा  नहीं रहेगा तो ५ साल के बाद भारत के नागरिक ही उन्हें और उनके दल को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा देंगे ।  पाकिस्तान का  मीडिया या कोई बाहरी ताकत  कैसे मोदीजी को हटा सकता है ?
मीडिया के लोग वकीलों जैसे खूब वाकपटु और तेज तर्रार होते हें। एक पत्रकार महाशय ने तुरंत पुछ लि,   "हम कैसे मोदीजी को हटा सकते हैं ? क्या आप का इशारा आई.एस.आई. के तरफ है ?"  महाशय सकपका गए । जवाब क्या दे सकते थे ? चलिए देखते हें किस तरीकेसे पाकिस्तान या उसके कोई संस्था मोदीजी को हटा सकता है।  क्या आदरणीय मणिशंकर जी के मन में हो सकता है?
  चलिए मोदीजी को हटाने का कुछ तरीका के ऊपर नजर डालाजाए ---
         १. पांच साल के बाद जब चुनाव हो भा.ज.पा. हार जाए और मोदीजी सत्ता से बाहर हो जाए।या फिर भा.ज.पा. जीतने पर भी कोई और प्रधानमंत्री हो,  मगर इसमें पाकिस्तान या पाकिस्तान की कोई संस्था या पाकिस्तान की जनता का कोई भूमिका नहीं हो सकता है। सिर्फ भारत के नागरिक ही यह काम को अंजाम दे सकते हें।
       २. भा.ज.पा. में फुट पड़जाए, दल टुकड़ों में बाँट जाए और मद्यावधि चुनाव हो, और फिर मोदीजी सत्ता से बाहर हो जाए। इस में भी पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं हो सकता है।
       ३. माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की हत्या होजाए। सिर्फ यही पाकिस्तान का खुफिआ एजेंसी आई.एस.आई  करा सकता है। ये निष्कर्ष पर मैं नहीं पाकिस्तान के  पत्रकार महोदय के सवाल से पहुंचा जा सकता है।
   मणिशंकर महाशय की बातों की गंभीरता को जानने के लिए भारत और  पाकिस्तान  की  राजनीति  के तौर तरीके के ऊपर नजर डालना पड़ेगा।
          स्वतंत्रता के बाद भारत से अलग हुए पाकिस्तान में जनता द्वारा चुनी गयी सरकारों को उनके कार्यकाल पूर्ण होने से पहले बर्खास्त करने की कई नजीर है। जनरल याकूब खान, जनरल याहिया खान, जनरल जिया-उल-हक़, जनरल परवेज मुसर्रफ जैसे सेना के मुख्य  गणतंत्र को  अपने बाहुबल से धुल धूसरित  करने के कई उदहारण है।   इस्कंदर मिर्जा(प्रथम राष्ट्रपति), नवाज सरीफ, बेनजीर भुट्टो और अंततः जनरल परवेज मुसर्रफ जैसे देश के भूतपूर्व शासकगण अपने मातृभूमि को छोड़ कर कई सालों तक बिदेश में शरण लेने पर मजबूर हुए हैं । लियाकत अली खान (प्रथम प्रधान मंत्री ) और  बेनजीर भुट्टो के हत्या हुई है, जुलफिकर अली भुट्टो की फांसी  हुई है। भारत में भी दो राष्ट्र प्रमुख  की  हत्या हुई मगर उनके कारण भिन्न है। देश को दो टुकड़ा होने से बचाने जैसा एक महिमापूर्ण कार्य के लिए श्रीमती इंदिरा गांधीजी शहीद हुए थे । पडोसी  श्रीलंका को उसके आतंरिक समस्या में मदद  करने जैसा एक महान काम के चलते आदरणीय राजीब गांधीजी की शहादत हुई थी। भारत हमेशा जनता और जनभावना को सम्मान किया है।
     गंदी  राजनैतिक खेल खेलिजनीवाली पाकिस्तान से मणिशंकर अय्यरजी किस तरह के सहायता की  अपेक्षा करते थे ?
क्या आप पाकिस्तान जैसा राजनितिक माहौल  भारत में चाहते  हैं ?
 भारत की संप्रभुता, प्रतिष्ठा, स्वायत्तता को मणिशंकर जी कैसे भूलगये पाकिस्तान से मोदीजी को हटाने के लिए मदद  मांगते समय ?
 आप जब बिदेश जाते हें, तब आप देश की आवाज होते हें, वहां की  आवाम  आपके आवाज से आप के देश की सोच और बिचार को सुनता है।  यदि कोई यह  कहे की ये आपकी अपनी भाषा था तो वह गलत होगा। आप जैसे बड़े नेता जब बिदेश जाते हें तो आप देश को प्रतिनिधित्व करते हें, कम से कम आप कांग्रेस का प्रतिनिधित्व तो जरूर कर रहे थे । क्या यही कांग्रेस की मंशा  है की पाकिस्तान में जैसे जनमत को निरादर कर कई बार सत्ता में परिबर्तन हुआ है, भारत में भी  ऐसा  बदलाव पाकिस्तान के  खुफिआ एजेंसी आई.एस.आई  के सहायता से लाया  जाए ?
 सत्ता से दूर रहने का ये कैसी छटपटाहट है की आप अपने देश की प्रधानमंत्रीजी को हटाने की जिम्मेदारी पडोसी  दुश्मन मुल्क को देना चाहते हें ?
क्या हमें  इसी को अशहिष्णुता नहीं कहना चाहिए??
          आपको  इतिहास से कुछ सिखना चाहिए।  भगत सिंह, राजगुरु,सुखदेव  जैसे  देशभक्तों को सूली पर चढा कर   क्या अंग्रेज अपने शाशन को स्थायी कर पाये थे? आपको  गलत फहमी है की मोदीजी के बाद  आप सत्ता पर काबिज हो सकते हें। मनोहर पर्रिकरजी , डॉ. रमन सिंहजी, शिवराज सिंहजी, जैसे कई देश भक्त  नेताओं में  मोदीजी के  आदर्श को आगे बढ़ाने की क्षमता   है। कांग्रेस जैसा एक परिवार या व्यक्ति के इर्दगिर्द  भाजपा की राजनीति  मजबूर नहीं है । दुश्मन मुल्क से जेन केन प्रकारेण सत्ता में वापस आने के लिए मदद  मांगना देश के लिए शर्मनाक बात है।

       


सच्ची दोस्ती

                                                                                                                             कहते  हें  क़ि  दुनिया सिमट गई ,
                         मगर सच तो यह है कि किसी अपने से मिलने में वर्षों  लग जाते हें।
                                             दिलों के फासले अब बढ़ने लगे हें ,
                                        जब से हम तरक्की की  राह में चलने लगे हें। 
एक समय था जब हम किसी से कुछ काम रहने पर, या फिर कुछ मसले पर बातचीत करने हेतु मिलने जाते थे। कभी कभी पूरे परिबार को भी साथ लेकर जाते थे। घंटों बातचीत करते, अपने दुःख को बाँट कर घटाते, अपनी  खुशियों  को साझा करते थे। अपनी  समस्याओं पर  बिस्तार  से चर्चा कर उससे बाहर निकालने का  तरीका ढूंढ निकालते थे। चाय के  प्याले  के ऊपर ढेरों ज्ञान बांटे-बढ़ाये जाते थे।  नजर और शरीर की  भाब भंगिमा को देख एक दूसरे से  रिश्ते मजबूत होते  थे ।आँख से आँख मिलाकर झूठ भी तो बोला नहीं जाता।  अतः  इंसान  एक दूसरे को  अच्छी तरह जान पहचान लेता था। आमने सामने बैठने पर कौन अच्छा और कौन बुरा, क्या  सही और क्या गलत ये साफ हो जाता था ।  आदमी ये सटीक तय कर लेता था कि  कौन सी दोस्ती या संबंध को आगे बढ़ाया  जाए या किस से  दूर रहा जाए। भरोसे में   धोखा जैसी चीज़ कम ही होती थी।  सम्बन्ध बहुत कम होते थे मगर प्रगाढ़ होते थे। इस बिषय पर एक छोटी सी कहानी का जिक्र करना उचित होगा।
  एक लड़का था। बिद्यालय से आने के उपरांत वह अपने दोस्तों के साथ घूमता रहता था। शाम को घर आकर  फेसबुक और वाट्सएप पर ब्यस्त हो जाता था। पढाई के प्रति अबहेलना देख कर उसके पिता प्रदीपजी  बोले "बेटा तुम ये जो मटर गस्ती कर रहे हो इस से तुम्हारा  भबिष्य मुझे अच्छा नहीं दिख रहा है। हम नौकरी पेशा लोग, ढंग से पढ़ लिख लेंगे तो पेट पालने में आसानी  होगी। नहीं तो दो वक्त की रोटी के लिए जिंदगी भर संघर्ष करते रह जाओगे।  या तो तुम अभी थोड़ा मेहनत  करो या फिर जिंदगी भर संघर्ष और मेहनत करना पड़ेगा। ये जो तुम्हारे दोस्त , जिनके साथ तुम दिन भर गुजारते हो सब एक एक करके अपने रास्ते चले जाएंगे। सब अपनी जिंदगी संभालेंगे, सवारेंगे। कभी जब मुलाकात होगी  हाए-हेलो कर देंगे, एक प्याला चाय साझा कर लेंगे, या फिर एक वक्त खाना खिला देंगे। तुम्हारी  समस्याओं को सुन कर 'आहा' बोल कर मोटा मोटा प्रवचन दे देंगे, और फिर अपने  रास्ते चल पड़ेंगे। और अगर तुमने  फिर से मिलने की कोशिश  की तो तुम्हे देख कर अपना रास्ता बदल देंगे या फिर वक्त न  होने का बहाना कर के तुम्हारे सामने से निकल जायेंगे  । कोई  तुम्हारे जिंदगी भर काम नहीं  आने वाला है। फेसबुक पर बुजदिलों और धोखेबाजों का जमावड़ा है। जो लोग अपना नाम और चेहरे को तुमसे छुपाए फिरते हें वे तुम्हारे  क्या किसी की  भी दोस्ती के काबिल नहीं। तुम उनसे बातचित करने में वक्त गुजार देते हो।  सोच कर बताओ तुम क्या ठीक और क्या गलत कर रहे हो।"
 देव  ध्यान पूर्क  सुनता रहा और फिर बोला, "पापा पढ़ाई के बारेमें जो आप ने कहा बिलकुल ठीक कहा।  मुझे उसपर और ज्यादा ध्यान देना होगा। हमें इस प्रतियोगिता पूर्ण समाज में खुद को किसी काबिल बनाना  पड़ेगा ताकि हम अपनी  काबिलियत के बूते समाज में अपनी जगह हासिल कर सकें। मगर दोस्तों के बारेमें और फेसबुक के बारे में मैं आप से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। यहाँ मेरे जितने दोस्त है बड़े अच्छे लड़के हैँ , हम सब समान विचारधारा के हैँ। एक दूसरे को बड़ी होशियारी से देख परख कर  हमने कदम आगे बढ़ाया है।आप किसी से भी बात कर सकते हें , किसी को भी आजमा सकते हें। वे सब विनम्र और समझदार है।जहाँ तक फेसबुक की  बात है आप कुछ ठीक और कुछ गलत हैं । हम फेसबुक ज्ञान आहरण करने हेतु खोलते हैं । देश विदेश के लोगों से दोस्ती कर के पूरी दुनिया के लोगों का कल्चर, जीवन-यापन का  ज्ञान सीधा लोगों से प्राप्त करने हेतु मैं फेसबुक का इस्तेमाल करता हूँ। बुरा न माने,आप भी तो फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं।  माफ़ कीजिये अगर ये कह कर मैंने आप को ठेस पहुँचाया तो।"
              इतना कहकर जब देव चुप हो गया तो प्रदीपजी बोले, " बेटा मुझे नाज है की तुमने  मेरी बात को ध्यान से सुना और उसपर अपने बिचार शालीनतापुवर्क व्यक्त किया । मैं तुम्हारी  कोई बात का  बिलकुल बुरा नहीं मानता।  क्यों कि  तुम उस उम्र में  पहुँच चुके हो जहाँ मेरे हिसाब से हम पिता-पुत्र के  अलावा अच्छे दोस्त की  तरह  अपने   बिचारों  को साझा कर सकते हें।  जब हम अच्छे दोस्त है तो फिर तुम कोई भी आपत्ति को क्यों नहीं व्यक्त कर सकते  हो? बेटा जहांतक मेरा फेसबुक इस्तेमाल की  बात है तो मैं  परिबार के प्रति, समाज के प्रति अपने कर्तब्यों का सुचारू ढंग से संपादन के उपरांत  बचे हुए  वक्त पर करता हूँ। जीबन के प्रति हर ब्यक्ति का एक नजरिया होता है , मेरा भी है। मेरे हिसाब से  जिन चीजों की समाज में  कमी है और मुझे लगता है की मुझे उसपर रोशनी डालनी चाहिए  में उसपर फेसबुक, वॉटसअप और ट्विटर पर लिखता हूँ। जिसे मेरे बात पर यकीन नहीं होता, या मेरे खुलेपन और सब को अपना समझना और बर्ताब करना पसंद नहीं आता, या जो दुनिया भर को शक की नजर से देखते हैं वे मुझसे दूर चले जाते हैं। जो लोग मेरे हिसाब से समाज मैं भेद भाव,नफरत का जहर,या वासना की  गंदगी  फैलाते हैं   उनसे मैं दूर हो जाता हूँ।  ऐसा  करते हुए एक वक्त ऐसा भी आएगा जब मेरे पास ऊँगली पर गिने जाने योग्य कुछ दोस्त फेसबुक पर होंगे।  जिनके जीबन और बिचार पर मुझे नाज होगा।  क्यों कि  मैं एक परिपक्व इंसान हूँ तो मैं किसी की मीठी बोली मैं आने वाला नहीं हूँ। फेस बुक और व्हाट्सप्प पर अपने विचारों को साझा करता हूँ।  यक़ीनन अबतक मुझे वहां कोई दोस्त कहलाने योग्य नहीं मिला है।  हाँ यहाँ शहर मैं सिर्फ दो लोग हैं जिनकी   दोस्ती पर मेरा भरोसा है, और उनके व्यक्तित्व  पर मुझे नाज है। अब तुम बताओ तुम्हारे  कितने अच्छे दोस्त है श.हर मैं ?"
४८ साल के जिंदगी मैं बस दो ही दोस्त? आप को सिर्फ दो ही ऐसे इंसान मिले जिनकी सोच और विचार आप से मेल खता हो ? आप तो हर रोज काम के सिलसिले मैं कई लोगों से मिलते रहते हो, फिर इतने कम दोस्त क्यों ? हमारे  यहीं बिलासपुर मैं ढेरों दोस्त है , कुछ स्कूल की वक्त के दोस्त , कुछ कालेज के , कुछ पुराने मोहल्ले  के जहाँ हम पहले रहते थे और फिर कुछ अभी की  कालोनी के।  क्या गिनती बताऊँ उनकी हम रोज मिलते रहते हैं ।"  मुस्कुराके प्रदीपजी बोले, " बड़ा अच्छा लगा ये सुन के की तुम्हारे ढेरों दोस्त है।  तुम काफी होशिआर लड़के  हो।  बड़ी होशियारी से दोस्त चुने होंगे। मगर बेटा मैं जानना चाहता हूँ की कौन तुम्हारे सबसे अच्छा दोस्त है।  उसके लिए एक परिक्षा  करना चाहता हूँ।  क्या तुम साथ देने को तैयार हो ?" तारीफ के सभी काहिल होते हैं।  पापा की  तारीफ सुन कर देव बोला, " हाँ पापा मेरे सारे दोस्त अच्छे हैं और उकी दोस्ती पर मुझे नाज है। आप किसी का भी परिक्षा  ले सकते हो। "
            प्रदीपजी धान की एक बड़ी बोरी निकाले और फिर उसे  एक इंसान  आकर देकर बांध दिए।  ऊपर से कुछ लाल रंग लगा कर उसे और एक बोरी मैं डाल दिए। देव से बोले "यह बोरी को साईकल के पीछे रखो और तुम जिसे अपना सबसे अजीज दोस्त मानते हो उसके पास जाओ।  उसे कहना कि  तुम्हारे हाथ से एक क़त्ल हो गया है। वह तुम्हे बचाले,और  तुम्हे कुछ पैसे की सख्त जरुरत है।  तुम्हे क्या जबाब मिला मुझे आ कर बताओ।" देव धान के बोरा को साइकिल  पर लाद कर निकल पड़ा अपने सबसे अजीज बचपन के दोस्त हरीश के पास। रोनी सूरत करते हुए बोला, " हरीश, मेरे भाई, मुझसे एक बड़ा अनर्थ हो गया है। एक अनजान शख़्स  से में उलझ गया और फिर तैश  मैं आकर  मेरे हाथों उसका क़त्ल हो गया है। अब तुम मेरी  कुछ मदद  करो, चलो इस लाश को कहीं छुपा देते हें। और फिर मुझे जितना तुमसे बन पड़े कुछ पैसा उधार दो।  मामला ठंडा होने के बाद तुम्हे सारा पैसा लौटा दूंगा।" इतना कह कर देव अपने हाथों से अपने चेहरे को ढँक कर रोने लगा और फिर अपने अजीज दोस्त हरीश के  जवाब की  प्रतिक्षा  करने लगा।  बहुत सोचने के उपरांत हरीश बोला, " देव, तुम तो जानते हो मेरे पिताजी कितने गुस्से वाले  हैँ ।  उन्हें पता चलेगा मैंने इन हालातों में तुम्हारा साथ दिया  है, तो  वे मुझे बहुत मारेंगे। तुमको आगे पीछे सोचना चाहिए था,  कुछ करने से पहले।  ये तो हत्या का मामला है।  आज नहीं तो कल उजागर हो जाएगा। पुलिस  का डंडा तुम तो खाओगे ही और फिर तुम्हे साथ देने के लिए मुझे भी जेल जाना पड़ेगा। मैं  इस जुर्म में तुम्हारे साथ नहीं हूँ यार।  जहाँ तक पैसे का सवाल मेरे पास कुछ भी नहीं है।  तुम कहीं और देखो। " इतना सुन कर देव बोला, "तुम मेरे सबसे पुराने और सबसे अजीज दोस्त हो।  इस बुरे वक्त में मैं अगर तुमसे मदद  की उम्मीद न रखूं तो फिर तुम कहो किस के पास जाऊं? जुर्म कहाँ जान बुझ कर किया हूँ ?  तुम्हारे पास तो हर वक्त पैसा रहता है। आज मेरे इस संकट की घडी में कुछ नहीं है यह कैसे  होसकता है  ? कम से कम हमारी दोस्ती का कुछ तो लिहाज करो।" फिर बडी दीनता  से हरीश के जवाब का इन्तजार करने लगा।  हरीश उसकी  दयनीयता का जबाब बड़ी कठोरता से दिया , " अब तुम कहाँ किसी के दोस्त रहे।  तुम अब एक हत्यारे हो।  हाँ , मेरे पास पैसा है लेकिन तुम्हारी  मदद  करने का मतलब अपराध में शरीक होने के बराबर माना जा सकता है।हमारी  दोस्ती के दिनों को याद करके मैं तुम्हे पुलिस  के हवाले नहीं करता हूँ।  मैं जनता हूँ अपराध या अपराधी को छुपाना  भी एक जुर्म है।  मगर इतने साल की दोस्ती के खातिर मैं यह  जुर्म करने को  तैयार हूँ।  लेकिन तुहे एक वादा करना पड़ेगा।  तुम कहीं भी, किसी को भी नहीं बताओगे की तुम यहाँ आए थे, और मुझे सब कुछ बताए थे। नहीं तो में अभी थाने में जाकर तुम्हारी  करतूत का पर्दाफाश करता हूँ।"  अपने अजीज दोस्त का जवाब सुन कर देव दंग रह गया और फिर हाथ जोड़ कर बोला, " में यहाँ फिर कभी नहीं आऊंगा। यहाँ आया था यह भी किसीको बताऊंगा नहीं।  तुम प्लीज़ पुलिस  की बात मत करो, मुझे बहुत डर लग रहा है।" इसके उपरांत देव अपने एक और दोस्त के पास पहुँच गया। एक के बाद एक उसके  सारे दोस्त जब उसे खरी खोटी सुना कर उससे  किनारे  हो गए, तो थक  हारकर देव अपने घर वापस आ गया।
                प्रदीपजी पूछे , "बेटा, क्या हुआ ? कितने दोस्त तुम्हारे साथ देने को तैयार हुए ? उन्होंने तुम्हे क्या सलाह दिया ? तुम्हारा  चेहरा  क्यों लटका हुआ है ? कुछ किसीने बुरा भला कहा क्या ?" सवालों के बौछार के जबाब मैं देव अपना सर झुकाके बोला, " में कितना गलत था पापा, आज पता चला। मैंने आज तक एक भी सच्चा दोस्त नहीं कमाया है। जितने से आजतक मिलता था वे सब सिर्फ जान पहचान  के थे । बल्कि  यह कहा जा सकता है की में उन्हें पहचानता भी नहीं था। अब सब साफ हो गया है। उन में से कोई एक भी सच्चा दोस्त कहलाने के योग्य नहीं है।  मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ  अपनी  पसंद पर।वे सरे लोग जिन्हे हम अपना दोस्त कहते थे, मुझे अपनी  पीठ दिखादिया। मुसीबत की समय कोई साथ देना तो दूर मुझे समझने की या सांत्वना देने का किसीने भी प्रयास नहीं किया"।बेटे  की पीठ थपथपाते हुए प्रदीपजी बोले, "चलो एक नकली समस्या ने तुम्हारी  आँखे खोल दी, कोई असली परिस्थिति होती  तब क्या होता ? तुम तो मुसीबत में अकेले  पड़जाते। दोस्ती  बड़ी सोच बिचार के करनी चाहिए। अब ऐसा करो तुम गुप्ता अंकल के घर जाओ।  वह  मेरा सबसे अच्छा दोस्त है।  उनके सामने अपनी समस्या  को रखो और मदद  मांगो।  वह जैसे कहें वैसा करो, नहीं तो फिरसे घर वापस आ जाना"।
 देव साइकल पर बोरे को  लाद कर गुप्ता जी के पहुँच गया। उनसे हत्या की बात बतायी ।  गुप्ताजी बोले, "बेटा, ये तो बड़ा अनर्थ हो गया।  कोई काम करने से पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए। अब जो हो चुका उसको ठन्डे दिमाग मैं  सोचते हैं ।  तुमने यहाँ आकर ठीक किया। तुम ने किसीको कुछ बताया  तो नहीं ? तुम्हारे पापा को पता है कि  नहीं ?" "अंकल, मैं सीधा यहाँ आ गया  हूँ।  पापा को बताने से  डर लगा। किसीको कुछ बोलने का हिम्मत नहीं पड़ा। आप ही कुछ कीजिये।" कुछ देर सोचने के बाद गुप्ताजी बोले, " देव, बेटा तुम बोरा हमारे घर के पीछे रख दो और हमारे घर में  बैठे रहो, कुछ खाओ पीओ। आंटी को कुछ मत बताना। हम तुम्हारे पापा से मिलकर कुछ न कुछ व्यवस्था करेंगे।  जब तक हम वापस न आजाए, बाहर मत जाना।  तुम्हारे चेहरे की घबराहट को देख कर कोई कुछ पूछ बैठा तो तुम कुछ का कुछ  बोल दोगे।  बात का बतंगड़ बनाने मैं लोग देरी नहीं लगेगी । तुम घबराना नहीं, तुमने जान बुझ कर  सोच समझ कर कोई जुर्म नहीं किया है।  यह तो एक हादसा भर है। हम इसका कोई न कोई समाधान करते हें। तुम्हे  कोई मुसीबत या परेशानी में पड़ने नहीं दूंगा।जैसा जैसा मैंने कहा वैसा करना।" यह कह कर गुप्ताजी अपने मित्र  प्रदीपजी से मिलने निकल गए। कुछ देर उपरांत दोनों मित्र देव से मिलने गुप्ताजी के घर पहुँच गए। प्रदीपजी देव से बोले, "बेटा तुमने मेरा एक दोस्त को तो देख लिया अब मेरा दूसरा दोस्त मिश्राजी के पास जाओ। उनको भी आजमाओ।  इस उमर तक आते आते मैंने सिर्फ दो ही दोस्त कमाया है । बाकि जितने मिले सब परिचित थे, जिंदगी के  रास्ते में मिले, परिचित बनकर  रह गए।  दोस्त कोई न  बन पाया।" देव धान  का बोरा लिए मिश्राजी  घर चला गया। मिश्राजी को  वही सब बातें बताए।मिश्राजी  भी बड़ी आत्मीयता से देव को सांत्वना देकर बोरा को अपने घर पर छुपाकर  उसको  साथ लिए प्रदीपजी  के घर निकल गए।  वहां से दोनों गुप्ताजी  के घर पर  आये। प्रदीपजी बोले , " बेटा पूरी जिंदगी गुजर जाती है एक अच्छे  इंसान से मिलने में।  मगर तुम जैसे नौजवान अपनी  कक्षा में पढ़ने वाले, अपने मोहल्ले मैं रहने वाले हर एक हमउम्र को दोस्त मानते हैं , और फिर धोखा  खा जाते हैं । माता-पिता से बेहतर बच्चों का कोई मित्र हो नहीं सकता। उसके बाद अगर  तुम्हारा जीवन भर कोई साथ निभाता है तो वह है तुम्हारी पुस्तक। वे  ज्ञान देती  हैं , जो कि  रोशनी की  तरह तुम्हें  पथ प्रदर्षित  करता  है, सही और गलत से हमारा परिचय  कराती है । "   इतना कहकर प्रदीपजी चुप हुए।

              देव बोला, " पापा मुझे अब और शर्मिंदा न करो।  अब में और बचकाना हरकत नहीं करूँगा।   मैं आपका   आभारी हूँ, आपने मुझे जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढाया।  जीवन भर यह मेरे  काम आएगा। " 
                            

Friday 19 February 2016

The wriggle of Iyar

                     See how shamelessly for the sake of power Jichand is kissing Ghori's feet,
                        Hiding the knife of conspiracy against Prithwiraj, he slanders in secret.
I saw an interview of Mr Manishankar Iyar, an Indian National Congress veteran leader with Pakistani journalists.I was stunned to listen him saying, " You remove Modi, Indo-Pak relation will be better.Some question come to my mind, which I know only he can answer better.
     1. Was Mr Narendra Modi the premier of India in the year 1965 when Indo-Pak war took place ?
     2.Was Modiji  ruling India in the year1971 when Bangladesh got freedom after an Indo-Pak war ?
     3. Was Modiji in power when the Pakistani army fought the Kargil war in the year 1999 under the leadership of General Pervej Musharraf ?
     4.Was the bilateral relation very nice in congress rule ? Were they not helping infiltration of militants in to           India in congress rules ?
     5.In a democratic system the fate of a political party is decided by the citizens of a country. Due to                 scams, corruptions and bad governance, Indian National Congress the political party Mr Iyer  represents        was defeated by Bharatiya Janata Party led by Modiji. A change of rule is  natural in democratic                  politics.But the question is  which type of wriggle was that on being out of power you wanted to seek             help of our neighboring nation ?
Media people are naturally wise and smart persons.One of them asked. " How can we from Pakistan remove Modiji, is your hints towards I.S.I. to do that for you ?" The journalist felt this is the only probable way Modiji can be removed with the help of Pakistan or any Pakistani machinery.
     Let us see how Modiji can be removed from the premiership.....
   1. When the parliamentary election takes place in the year 2019, the BJP lose majority and Modiji steps down or even if the BJP wins someone else lead the party.In both the cases the Indian citizens only would be the voters and Pakistan will not be having any role to play.
    2. A split in the BJP that lead to a midterm poll and the BJP lose it, in that case also Modiji will have to go out of power. But Pakistan or any of its mercenary can do nothing towards this.
    3. Assassination of Modiji is the probable way that the Pakistani secret agency can materialize.One can reach to this hidden hint of Mr Iyer when he said, " You remove Modi,.."  in Pakistan.
  In order to know the graveness of Mr Iyar's statement we need to analyse the fate and course of democracy in India and Pakistan.
           In independent Pakistan there are many examples of democratically elected populist governments were dismissed by the muscle power of military rulers before completion of their tenure. People like general Ayub Khan, general Yahya Khan, general Zia-ul-Haq and general Pervez Musharraf smashed the soul of democracy. But India never interfered in their internal matters. Iskander Mirja (the first president of Pakistan), Mr Nawaj Sariff, Mrs Benazir Bhutto and lastly general Pervez Musharraf  lived in exile for years when they were out of power. Liaquat Ali Khan( the first prime minister of Pakistan), Benazir Bhutto were assassinated and Z.A.Bhutto was hanged to death. Martial laws were proclaimed many times in Pakistan smiling at its democracy.
           In India never any political leader needed a political asylum or was exiled. No former state chief is hanged.Indira Gandhi was assassinated due to her patriotic efforts to save India from being divided by the Khalistan movement. Rajiv Gandhi was martyred due to his brave efforts to free Srilanka  from terror threats of the Tamil militant group LTTE. None of them was a political murder.Twenty one months period from 1975 to 1977 of internal emergency was the only dark days of democracy in India for which the then ruling party congress was thrown out of power as a punishment by the citizens.Except this Indian politics and leaders always respected democracy and its norms.
          Many more questions still rising in my mind.
  Which type of help our respected Iyarji and his party was seeking from a nation that has tarnished the image of democracy so many times ?
   How could he forget the sovereignty , integrity, dignity and republic nature of  our nation when he begged help from them to remove Modiji ?
 When you are in a foreign tour your words are regarded as the voice of your nation and its people. You represent us and the congress there. Is this in the mind of the congress to dethrone Modiji as it happened many times  in Pakistan and that too with the help of the ISI ?
  Which type of wriggle is this,on being away from power you wanted the enemy nation to remove your prime minister by hook or by crook ?
   Is this not what one can say intolerance ?
    We need to learn from history. Ghori did not spare Jaichand who invited him to take revenge from Prithwiraj. The Britishers hanged patriots like Bhagat Singh, Sukhdev and Jaiguru but were they able stop India from being free from foreign rule ?
 There are many  bold people in the nation like Manohar Parikar, Dr Raman Singh, Shivraj Singh Chauhan who can walk in Modi's way. The BJP is not handicapped and dependent on a person or  a family.The nation is significant, not any individual or a family or any political party. Those words of you are a shame on us all.

Friday 12 February 2016

THE REVOLUTION

Pradipta wants to wage another freedom struggle,
But there is no need of demonstration, placards or posters for it,
Moreover swords, guns, bombs, sticks are of no use here,
Also we do not need a leader or a messiah to motivate and mobilize people,
As it is not a fight against any invader or ruler or administration,
It is a revolution to change our thought process and adjudicate things unbiased.
Pradipta  does not wish a domestic uproar, rather want a mental uplift.
Of our attitude, approach towards issues of social, humanitarian and global concern.

Affection for younger ones, sympathy for handicapped persons,
Respect for elderly persons and women are our age old culture.
Let us not elect representatives because of their caste, region or religion,
Or religious bend nor blindly follow them because of some prejudiced reasons.
Let us judge them of their deeds, policy and their social life, 
And not for their eloquence, history or  family background.  
Let us opt out issues of smaller interest of our region,
For the larger ones, the more significant and those of national concern.
Let us not give or take kickbacks or bribe for any reason,
Or encourage and entertain nepotism or discrimination.
Let us  prefer relations, emotions,character, conduct over money,
As wealth may look lucrative but might end up with solitude and agony.
Demanding and taking dowry or killing a woman for that,
Is by no means a civilized or humanitarian conduct.
Female feticide is nothing different from murder, 
As a female child deserves to be respected as a future mother.
It is brutality and inhuman to commit honor killings,
Of those are ours and need our love and selfless consideration.
Cleanliness, taking care of our environment is essential for our health,
A great heart and a sincere effort can make a heaven, our home this earth.
We need to be men of virtue and conscience,
After all we claimed ourselves to be developed and civilized !!!   

Wednesday 3 February 2016

FEAR FACTOR

You fear the unharmful, unaggressive and an unlikely foe,
Just because of your ignorance or because you lack a clue.
              Or may be due to some silly and unjustifiable perceptions,
              Injected and established hereditarily in to your blood veins.
You never venture to know and ascertain the truth,
Or wish to get in to a situation and measure the depth.
              Even being unaware of it's features, structure and nature,
              You expect a danger and concede a threat to be hidden there.
No war can ever be won without being fought,
Likewise no race can be completed without a start.
                              The one who takes risks, steps on deserves a gain, 
                               Nothing can be achieved with  a closed brain.
A coward can never get a reward or an achievement,
At the same time fortune and success favors the valiant.
                               Trust in yourself, your ability and your worth,
                           Identify your weakness and cash on your strength.
Before desiring and deciding to become a conqueror,
It is essential for you to win over your own fear factor.

ଆଜି ପରା ରଥ ଯାତ

https://youtu.be/38dYVTrV964 ଆଜି ପରା ରଥ ଯାତ, ଲୋ ସଙ୍ଗିନୀ ଆଜି ପରା ରଥ ଯାତ  ବଡ ଦାଣ୍ଡ ଆଜି ଦିବ୍ୟ ବୈକୁଣ୍ଠ ଲୋ  ରଥେ ବିଜେ ଜଗନ୍ନାଥ।  ଏ ଲୀଳାକୁ ଦ...