Sunday 20 December 2015

मज़बूरी बेवफा तेरी

अपना मतलब साधने का नाम मज़बूरी नहीं होता है,
मगर हर बेवफा के पास बस यही एक बहाना होता है।
                      अपने बच्चों को खाकर भी मगर मच्छ रोता है ,
                      आंसुओं पर मत जाओ इनकी,ये दिखावा होता है।
नजर एक पर, दिल में एक और होता है,
जुबान पर कुछ  और दिमाग मे  कुछ और होता है।
                    होठों  पर मुस्कान मगर बगल  में खंजर होता है ,
            हाथी का दाँत है ये खाने का और दिखाने  का और होता है।

1 comment:

  1. You remember this poem composed by evermore, the very wonderful incomparable poem. And every word the truth. Pretty much unique.

    ReplyDelete

ଆଜି ପରା ରଥ ଯାତ

https://youtu.be/38dYVTrV964 ଆଜି ପରା ରଥ ଯାତ, ଲୋ ସଙ୍ଗିନୀ ଆଜି ପରା ରଥ ଯାତ  ବଡ ଦାଣ୍ଡ ଆଜି ଦିବ୍ୟ ବୈକୁଣ୍ଠ ଲୋ  ରଥେ ବିଜେ ଜଗନ୍ନାଥ।  ଏ ଲୀଳାକୁ ଦ...