हे श्याम, तेरा हर दंड, हर पुरस्कार,
अमित कृपा है तेरी, है असीम उपकार।
तेरे सज़ा में भी रहता है सदा कोई छुपे हुए हित,
श्रद्धा से देखें तो झलक जाता है तेरा कल्याणकारी चित्त।
बाढ़ यूँ तो कर देती है जनजीवन अस्तव्यस्त,
पर उतरन में दे जाती है उर्वरक मिट्टी की परत।
अमित कृपा है तेरी, है असीम उपकार।
तेरे सज़ा में भी रहता है सदा कोई छुपे हुए हित,
श्रद्धा से देखें तो झलक जाता है तेरा कल्याणकारी चित्त।
बाढ़ यूँ तो कर देती है जनजीवन अस्तव्यस्त,
पर उतरन में दे जाती है उर्वरक मिट्टी की परत।
खुशिआं अनायास ले जाती हैं मन को तेरे ओर,
पीड़ा बांध देती है तुझ संग एक नई डोर।
दास तेरी अनुकम्पा के प्रति है आश्वस्त,
जो सज़ा मज़ा हर हाल मंगलमय है समस्त।
एक दृढ़ विस्वास है की तुम हो मेरे साथ हर हाल,
बंधे भाव की भव्य रजु से अभंजनीय काल काल।
खुशी की खींच, दुःख की खींझ है तो सोच अवांछित,
प्राप्ति और हानि मैं अब समभाव है आचरण उचित।
मन , लेखन, वचन आचरण में समता ,
है तो तेरे दिव्य उपस्थिति कि विशिष्टता।
आशीष अगर तेरा है , तो मैं हूँ बड़ा भाग्यवान,
बस मुझे करना है तेरे चरण में आत्मसमर्पण।
दास तेरी अनुकम्पा के प्रति है आश्वस्त,
जो सज़ा मज़ा हर हाल मंगलमय है समस्त।
एक दृढ़ विस्वास है की तुम हो मेरे साथ हर हाल,
बंधे भाव की भव्य रजु से अभंजनीय काल काल।
खुशी की खींच, दुःख की खींझ है तो सोच अवांछित,
प्राप्ति और हानि मैं अब समभाव है आचरण उचित।
मन , लेखन, वचन आचरण में समता ,
है तो तेरे दिव्य उपस्थिति कि विशिष्टता।
आशीष अगर तेरा है , तो मैं हूँ बड़ा भाग्यवान,
बस मुझे करना है तेरे चरण में आत्मसमर्पण।
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