Wednesday 6 January 2016

सितम

तेरे ढाए सितम ने वो अश्क बहाया ,
होश में तो छोड़ मेरी नजर ख्व्बों में  भी छलक आयी । 
मत पूछ कि  क्या हाल  है  मेरा तेरे बगैर ,
अपने दिल में झांक कर  तू इसका अंदाजा कर।
तू ही बता अब उसका  कौन है सहारा ,
जो गैरों से नहीं अपनों से ही हारा ?
माझी जब नैया डुबोने पर उत्तर आए ,
सवारी अपना  दुखड़ा किसको सुनाए ?
खुदा अगर बन्दे पे नाराज हो जाए ,
बेचारा बंदा अपना माथा कहाँ झुकाए ?
ऎसी भी क्या थी तेरी मज़बूरी ,
गैरों से करीबी  अपना  से दुरी।
जाने-अनजाने में  मुझसे हुआ  कोई दोष ,
बक्स  दो या सजा दो मगर छोड़ दो ये रोष।     

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