Saturday 17 September 2016

मासूम परिंदा

कब तक रोएगा मन को मार कर,
हकीक़त से भाग कर, खयालों में जी कर,
एक बार अपने घोंसले से छलांग लगा कर तो देख।

खुदा ने तुझे ही क्यूं पंछी बनाया,
खुले आसमान मैं उड़ने कि काबिल बनाया,
एक बार अपने हुनर को आजमा कर  तो देख। 

मत कर किसी और पर भरोसा,
तू अनुपम है, कोई नहीं है तेरे जैसा,
एक बार खुद को "हाँ " बोल कर तो देख। 

कब तक इस डर से बैठे रहोगे,
कि गिर जाओगे,मर जाओगे, लोग हसेंगे ताने कसेंगे,
एक बार डर क़ो पछाड़ कर तो देख। 

दुनिया की ये रीत है, डर के आगे जीत है,
फिर तू क्यूं इतना भयभीत है,
एक बार उड़ने की हिम्मत कर के तो देख। 

जो डर गया उसे तू मर गया मान,
मुर्दों का कैसा अरमान? कौन सी उड़ान?    
एक बार जिंदादिल बन कर तो देख।

वो देखो अम्बर में उड़ते परिंदे,
वे भी तो कभी थे तुझसे छोटे बंदे,
एक बार तू भी आसमान पर हक़ जताकर तो देख। 

आंख खुली तो रोशनी है, चल पड़े तो रास्ते है,
सारी धरती, सारे आसमान तेरे वास्ते हें,
एक बार मंजिल की ओर कदम बढाकर तो देख।   


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