Friday 24 July 2015

समाज का दर्पण

बाबा बन कर प्रवचन देनेवाले ,
                      आस्था को बेचकर खाते हैं ,
नफरत का जहर फैलाते हुये ,
                         अपनी दुकान चलाते हैं।
धर्म के टुकड़े करने वाले ,
                            अपना पंथ बनाते हैं ,
खुद भगवान बन जाते हैं ,
                     लोगो  को उल्लू बनाते हैं।
त्याग,मोह पर प्रवचन देने वाले ,
                भोग-विलाश  में रम जाते हैं ,
नगर सेठ घर ठहराव करके ,
प्रवचन के एवज में बड़ी राशि एठ  जाते हैं।
पढाई आधे में छोड़ देने वाले,
              स्कूल ,कॉलेज खोल बैठ जाते हैं ,
सरस्वतीजी   की पूजा करने के बहाने ,
             लक्ष्मीजी  की आरती उतारते हैं।
समाज के चौथी  स्तम्ब कहलाने वाले ,
             छोटी मोटी खबर छापते रहजाते हें ,
बड़े बड़ों से सौदा करके ,
                   अपनी  तिजोरी भरते  हैं।
सरकारी ऊँचे औहदे पर बैठने बाले,
             मासूम जनता पर कहर  बरपाते  हें ,
भले बुरे  की  विवेचना छोड़ो ,
             खुदा तक को भूल जाते हैं।
हमारे वोट पर सत्ता में कविज होने वाले ,
                            हम पर रॉब जमाते हें
पांच साल में एक बार सर झुकाते हें ,
                  आगे उलाहना बरसाते हैं।
औषधि बिज्ञान पढ़नेवाले ,
          जन और सेवा  को भूल जाते हें ,
आपस में सांठगांठ  करते हुए ,
               मरीज को लूट कर खाते हैं।
सचाई  की राह पर चलनेवाले,
                              चैन की रोटी खाते हें ,
थोड़े से गुजारा करते हें
                      सुकून की जिंदगी जीते हें।

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