बहुत करलिया तू मनमानी,
बहुत हो चुका हमारा सब्र,
अब तो खोदेगी भारत
की सरकार,
हर हाल में दहशतगर्दी की कब्र।
ये वो दल नहीं जो सदा करता फिरे
वोट बैंक की भद्दी
राजनीति,
बिगाड़कर देश का मुस्तकबिल ,
बनजाए गद्दी की ख़ातिर पक्षपाती।
सत्ता सुख के भुक्खड़
थे सारे,
देशहित से उनको न था सरोकार
धन कमाने को फिकरमंद थे वो,
देश ओ जनता के थे वो गद्दार।
वर्ना पहले भी तो थी
हमारे देश की
वही सैन्य-शक्ति की
तलवार,
पहले भी थी हममें
उतनी क्षमता,
उस तलवार में वही धार।
पर न था हमारे देश के पास ,
आजसा ताकतवर नेता, देशप्रेमी सरकार
और न थी उनमें वो इच्छाशक्ति,
कि करता कोई निर्णायक वार।
वक़्त की नज़ाकत को समझो,
तो बंद कर दो
धर्मान्धता का कारोबार
वर्ना लोग कहेंगे "एक
था फलां मुल्क,
देखो वहां अब है उसका
खंडहर।"
नोट--- जब कोई
दल सत्ता की खातिर आतंकवाद का
विरोध न करते हुए यह मान लेता हो
की उसे मुसलमान का वोट मिल जायेगा तो
वो हमारे सारे मुसलमान भाईओं को आतंकवाद के
हमदर्दों में गिन लेता है, यह
हमारे मुसलमान भाईओं के देशप्रेम
पर संदेह और उनका अपमान है । जब
कि ये
देश बहादुर शाह जफ़र, मौलाना
अबुल कलाम आज़ाद
जैसा अनेक वीरों की देश भक्ति का ऋणी
है। ए.पी.जे.अब्दुल कलाम, जिनका नाम लेने से
हमारे सिर सम्मान से झुक जाते हैं
, क्या ये देश के इस
सपूत का अपमान नहीं?
मुस्लमान वो गुल है जो इस गुलिस्तां का एक अभिन्न और विश्वस्त हिस्सा है। उसे वोट का टुकड़ा न समझो, वो इस मिटटी की एक खुशबू है।
मुस्लमान वो गुल है जो इस गुलिस्तां का एक अभिन्न और विश्वस्त हिस्सा है। उसे वोट का टुकड़ा न समझो, वो इस मिटटी की एक खुशबू है।
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