Sunday 8 April 2018

सच-झूठ


हथेली में सच का सूरज लिए चलता हूं,
 इसलिए तो सब की नजर को खटकता हूं। 

लोग कुछ दूर साथ चल कर अंधेरे में छुप जाते हैं, 
यकीनन उनकी नजर मेरी ओर देख कर चौंधिया जाती हें। 

फिर झूठ को सौ बार कह कर सच साबित करने में लग जाते हैं, 
थक हार कर अपनी खीझ मुझ पर ही निकालते रहते  हैं।  

क्यूँ करूं शिकायत दुनिया की, किस किस पर हो जाउँ नाराज,

यह तो खजूर का पेड है शुरु से अंत तक कांटों का है राज। 


बेशक झूठ के अँधेरे में खडे लोगों की तादाद बहुत बडी है,
मगर सच के नुमाइंदो को तादाद की फिक्र कब पडी  है। 

भेड़िओं की  तादाद से शेर कहाँ कभी डर जाया करता  है,
कोई साथ रहे या न रहे एक सच्चे का क्या आता क्या जाता है।   

दुनिया कहीं भी चले सच्चा अपना सीना ताने सदा रहता खडा है, 
उसे यकीन रहता है कि आज नहीं तो कल फूट जाएगा झूठ का घडा है।  



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