Monday 17 October 2016

सुमन की अभिलाषा


न जाने कितने सपने सजाए 
                   कली से हम फूल बने,
जो टूटे डाल से किसी दिन
            तो तेरे  चरणों कि धूल बने। 
न इनसानों के गले लागूं 
                 न मौजी कि  कलाई पर,
न शमसान की शोभा बनूं 
               न  बनूं मैं  गजरे कि लहर। 
अपनी खुसबू अगर बिखरे 
          तो आंगन हो तेरे मंदिर का 
अगरु, धुप से मिल कर मैं 
              मन मोहलूं अपने ईश्वर का। 
मेरी रंगत से और निखरे 
            पीले   देहबास तेरे तन का, 
अंजली भर मैं चूम लूं 
           कण कण रज तेरे चरणों का। 
छोटे से इस जीवन को 
         जो तेरी सेवा का अवसर मिले,
जनम सफल हो जाए मेरा 
                ऐसा मुझे आशीष मिले । 

10 comments:

  1. Nice line sir I respect you from the bottom of my heart

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  2. So nice.
    Please send your writing 888964047

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  3. Sir, you are a very nice person serving to the society and the Nation. Your writing may bring a new era in the world of darkness.
    Met you in the train physically. CA Avinash Beriwal

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  4. एक मनुष्य का फूल के माध्यम से ईश्वर के प्रति बड़ा ही सुंदर समर्पण दिखाया है आपने...
    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ ...
    पहली दो पंक्तियाँ ही मुझे सबसे अच्छी लगीं...

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