रंग रसिया
क्यूँ चुमा आज सूरज गगन को,
क्यूँ हुई सुबह राधा के आंगन को।
क्यूँ आया बैरन होली का त्यौहार,
क्या न जानती थी, कान्हा गए मथुरा नगर।
कान्हा बिना ब्रज में कैसी होली,
किस के रंग से भीगेगी राधा की चोली।
क्या है मथुरा नारी में की तुम उनकी हो ली
फिक्र न रहा हमारे हम के संग खेलेंगे होली।
तुम आत्मा हो श्याम तुम बिन मैं निर्जीब काया,
जड़ पर क्या रंग का असर कैसी होली की माया।
तुम सागर बिशाल मैं बूंद अति नगण्य,
तुम आकाश असीम मैं मेघ अति सामान्य।
जलवत तुम बिन रंग अबीर गुलाल,
तेरे संग बिन होली का न कोई मोल।
हर रंग फिका है श्याम तेरे रंग के सामने
तुम जो मुँह फेर लो तो जीवन के न है कोई मायने।
तुम बूंद भर रंग दो तो हमें बौछार मिल जाए,
और बारिश भी कर दें तो हमें बूंद भी न आए।
दीवानी हूँ श्याम मैं तेरे पिरीति परश की,
प्यासी हूँ सदा से मैं तेरे मधुर रास रस की।
आज के दिन तो घर आजाओ रसिया,
गोकुल के जीवन मेरे मन वसिआ।
भूमिका: होली के पावन अवसर पर श्रीकृष्णजी के मथुरा प्रवास में श्रीराधाजी की बिरह व्यथा।
भूमिका: होली के पावन अवसर पर श्रीकृष्णजी के मथुरा प्रवास में श्रीराधाजी की बिरह व्यथा।
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