Saturday 21 October 2017

दिवाली 1

सजादो ओ  जगवालों  चाहे जितना दिया मेरे चारों ओर,
कर नहीं पाओगे मेरे मन पर छाया गम का घना अँधेरा दूर।

तुम चाहते हो कि  मैं भी थोड़ा उजालें  से नहालूँ,
गम के  अँधेरे से निकल कर कुछ देर मुस्कुरालूँ।

आज  थोड़ी देर मैं मुस्कुरा भी लूंगा तो  फिर कल क्या होगा,
कल  फिर से मुझे अंधेरे की पनाह में  तो जाना ही होगा,

इन नन्हे प्रदीपों से तुम मेरे मन को रोशन करने की चाह रखते हो,
बड़े नादाँ हो तुम, जुगनुओं से जग उजियारा करने का आग्रह करते हो।

है एक चांद जो कर सकता था  मेरे  अँधेरे  को दूर,
ढल चुका  है वह,  भूल चुका  है राह मेरे आसमान की ओर।

पूर्णमासी फिर नहीं आएगी कभी मेरे जीवन में,
अमावस तय कर चुकी  है कि  करेगी राज अब  मेरे आंगन में।

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