Monday 16 October 2017

मेहमान

अचानक एक दिन आप अजनबी बन कर मेरे जीवन में आये,
चेहरे पर मुस्कान, हाथों में गुलाब ले आये। 
मेरे मन के आंगन को खुशियों की रंगोली से सजा दिए,
अपने मनमोहक अंदाज से दिल में एक अनजान अरमान जगा दिये। 

दिल बेचारा बर्षो से तन्हा था,
करता भी तो क्या करता,
हुजूर की नज़रों के तीर से अपनी नाज़ुक धड़कनो को,
चीर जाने से बचाव करता भी तो कैसे करता। 

हिफाजत की सारे प्रयास जाया हो गया,
जो कुछ था अपना पराया हो गया,
मुझसे एक खूबसूरत गुनाह हो गया,
मेहमान पर यह दिल फिदा हो गया,
कल तक था वीरान बंजर अब गुलिस्तां हो गया,
मेजवान का दिल ना जाने कब  मेहमान का मेहमान हो गया। 

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