Sunday 8 October 2017

विनती

ढेरों है असुर पिशाच मेरे मन के अंदर,
घात लगाए बैठे हें वे सब मेरे देवत्व पर। 

मोह, द्वेष, क्रोध,लालच न जाने कितने है दुश्मन मेरे,
पथ रोके खडे हें अडिग तेरे भक्ति की राह पर सारे। 

एक को मारता हूं ले कर तेरी भावना की तलवार,
तो एक और खडा हो जाता है सिना ताने सामने उठ कर। 

एैसा न हो कि देवत्व कभी मुझ में जाग न पाए,
थक हार कर मेरी आँख सदा के लिए बंद हो जाए। 

लड़ाई जीतने तक, कान्हा तुम हमें जीवित रखना,
तेरी करूणा का छत्र मेरे सर पर बराबर बनाए रखना। 

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