Friday 7 September 2018

प्रीति में कृष्ण

जीवन यात्रा की,
 एक नियत सीमा है,
कहीं तो सिमट जाएगी। 

सांसों  के डोर की,
एक निर्धारित लम्बाई है,
कभी तो टूट जाएगी। 

यह जीवन,
एक तैरती नाव है,
कभी तो किनारे लगेगी। 

वह सीमा, वह टूटना, वह किनारा,
है तो नहीं  कोई मंजिल पसंदीदा,
है तो नहीं कोई अनुभव खुशनुमां।

मगर हो भी सकती है पसंदीदा,
हो भी सकती है खुशनुमां,
अगर ह्रदय में प्रीति हो बेशुमार,
प्रीति  में कृष्ण हो निरंतर। 

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्। 
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति  ते। गीता १० :१०। 
उस निरंतर भक्ति मैं परायण, प्रेमसहित मुझे भजनेवाले भक्तों को मैं वह बुद्धियोग देता हूँ जिससे वे मुझे प्राप्त कर सकें। 

सर्वधर्मानपरित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्ष्ययिष्यामि मा श्रुच। गीता १८:६६। 
(समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरे शरण में आओ। मैं समस्त पापों से तुम्हारे उद्धार कर दूंगा। डरो मत )  



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