Thursday 7 September 2017

तुम कहो क्यूं

वसंत के बगीचे में पहले भी वह रंग ओ रौनक थी, मगर,
मेरे मन के फूल पर उनकी कोई असर न था। 
पहाडों के सीने से ठंडी हवाओं की आवक पहले भी थी, मगर,
मेरा कलेजा उसकी चुभन से कभी थर्राता न था। 
आसमान के आंगन से चांद पहले भी श्वेत हलस बिखेरता था, मगर,
मेरी भावना की परिधि में कोई उजाला पहुंचता ही  न था। 
आम के उपवन में कोयल पहले भी सुर साधना करती थी, मगर,
मेरे लिए वह सिर्फ एक मामुली चहचहाहट से ज्यादा न था। 

तुम कहो,
क्यूं आज वसंत के गुल दिल को इतना लुभाती है ?  
 ठंडी हवा क्यूं आज  तन मन को रोमांचित करती है ?  
क्यूं चाँदनी आज दिल को इतने प्यार से गुदगुदाती है ? 
आज क्यूं कोयल मिलन का सुर विखेरे नजर आती है ? 
क्या यह तेरे आवन का असर है ?
या फिर इसकी वजह कुछ और है ?


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