Saturday 23 September 2017

नेत्रजल

मैं पकड लाया अपने सर पर मँडराता एक आवारा सूखा बादल,
भर दिआ उसके खाली उदर में अपना खालिस नेत्रजल। 

कहा "जाओ भीगोदो मेरे महबूबा के उपवन को,
पल्लवित कर दो उसको, उनके खूबसूरत मन को। 

मगर होशियार गर्जन या बिजली भूल से न गिराना,
उनके नाजुक दिल को तनिक भी न डर जाने देना। 

उनको न कहना की ये मेरे आँसू है.कहीं सुन कर वे रो न लें,
अपनी हवा से शीतल कर देना उनके यहां बरसने से पहले। 

पहचान तो लेंगे वे मेरे नेत्रजल को मगर उनको तुम भुला देना,
समंदर का है, तभी नमकीन है उनका नहीं, वो तो बेवफा है कह देना। 

कम पडजाए, खाली हो जाओ तो वापस यहां आ जाना,
भर दूंगा फिर से तेरे घडे को उन को कमी नहीं होने देना।" 

ढेर दिन से गए हें, उनको एक टक देखने को मेरे नैन तरसते हें,
उनके आवन के चाहत से ये नादान  दिनरात बरसते हें। 



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