Monday 18 September 2017

मैं कुछ भी नहीं हुं

न मीरा की लगन है,
तेरे प्रेम के सागर में खो जाउँ। 
और न राधा सा प्रेमी हूँ,
सब भूल कर तेरा हो जाउँ।  

न मेरी आस्था द्रौपदी सी है,
मुसीबत में तेरे साथ मिल जाए। 
और न मैं मासूम ध्रुव सा भगत हूं,
तेरा आशीष हर हाल मिल जाए। 

न मेरा वह कर्म है,
कि तुझे पास पा जाउँ। 
और न मुझ में वह धर्म है,
कि तेरा आशीष पा जाउँ। 

न मेरी भक्ति में वह शक्ति है,
कि तेरे दया का साया मिल जाए,
और न मेरे कर्म में वह पुण्य है,
कि तेरे हृदय में एक जगह मिल जाए। 

मैं कुछ भी नहीं हुं,
बहुत कुछ की आस कर रहा हूं
बूंद से कम हूं ,
सागर के दिल में जगह की तलाश कर रहा हूं। 

कान्हा,मुझे दो वही जिसके मैं लायक हूं,
और वह जो तेरे दिल के माफिक हो। 

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