Monday 11 September 2017

चरणे शरण

गिरिधर खोल नयनपट देखो,
मन करे मारो, मन करे राखो। 
तेरे द्वार एक याचक खडा,
खाली है झोली,नयन है भरा।  
लोक जीवन को सब तुम दिए,
वह धन दो जो परलोक काम आए। 
 संसार धन हलाहल न चाहूँ,
चरण शरण में आजीवन रहूँ। 
तुम तरूवर मैं पंछी अति छोट,
रख मोहे कर तब दया पात ओट। 
तुम सागर विशाल,मैं क्षुद्र जलधार,
 समेट लो मुझे तुम, हो जाऊँ एकाकार। 
तुम दाता हो सब जन आसरा,
दे दो मेरे आँचल भर प्रेम रस कतरा। 
मीरा का विष दो, पी के अमर हो जाउँ,
राधा का विछोह दो जी के तर जाउँ। 

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